शनिवार, 14 जनवरी 2012

शुष्क आँखों की समस्या और निदान




जब कोई व्यक्ति बहुत दुखी परंतु अपना दुख अपनी व्यथा व्यक्त करने के लिए उसकी आँख से आँसू नहीं बहते, तब अक्सर लोग कहते हैं कि अरे वह इतना दुखी है कि उसकी तो आँख के आँसू भी सूख गए हैं। पर आज हम उन आँसुओं की बात नहीं कर रहे हैं। हम उन आँसुओं की बात कर रहे हैं जो आँख को चिकनाई प्रदान करते हैं और उनका पोषण करते हैं। ये हमारी दृष्टि को स्पष्टता प्रदान करते हैं। आँख में आँसुओं का न आना या पर्याप्त रूप से न आना एक प्रकार का रोग है। जो प्रायः पचास वर्ष या उससे भी अधिक उम्र के लोगों को होता है। शुष्क आँख के रोगियों को आँखों में हरदम किरकिरी सी महसूस होती है। तेज रोशनी में उन्हें आँखे खोलने में तकलीफ होती है।

प्रत्येक बार पलक झपकाने के साथ ही आँख के सामने की परत (कॉर्निया) पर आँसू फैल जाते हैं। ये आँख की परत को चिकनी रखने, उसे संक्रमण से बचाने और उसे साफ रखने का कार्य करते हैं।

सूखी आँखो की समस्या मुख्यतः दो प्रकार की होती है-

अपर्याप्त मात्रा में आँख में आँसू आना
आँसुओं की खराब गुणवत्ता।

अपर्याप्त मात्रा में आँसू आना
आँसू पलकों की आस-पास की ग्रंथियों द्वारा उत्पादित होते हैं। कुछ लोगों में उम्र के साथ आँसुओं का उत्पादन में कमी आ जाती है। विभिन्न चिकत्सीय कारणों, दवाओं के साइड इफैक्ट्स के कारण में कई बार इस तरह की समस्या जन्म ले लेती है। पर्यावरणीय स्थितियां जैसे शुष्क जलवायु भी आँसुओं की मात्रा को कम कर सकता है। जब सामान्य मात्रा में आँसुओं का उत्पादन नहीं होता या शुष्क जलवायु के कारण आँसुओं का वाष्पीकरण जल्दी होने लगता है तो शुष्क आँखों की समस्या के लक्षण उत्पन्न हो सकते है।
आँसुओं की खराब गुणवत्ता
आँसू तेल, पानी और बलगम की परतों से बनते हैं। प्रत्येक घटक आँख के सामने की सतह को पौष्टिकता और सुरक्षा प्रदान करने का कार्य करता है। चिकनी तैलीय पानी की परत के वाष्पीकरण को रोकने में मदद करती है। इससे आँसू आँख की कोमल सतह पर सामान्य सामान्य रूप से फैलकर उसकी कार्य प्रणाली सरल और सहज बना देता है। आँसू की इन परतों में से किसी भी एक परत में किसी भी कारण से यदि आँसू बहुत जल्दी वाष्पीकृत हो जाते हैं या कॉर्निया पर समान रूप से नहीं फैल पाते, तो शुष्क आँख के लक्षण विकसित हो सकते हैं।

शुष्क आँखों की समस्या का प्रमुख कारण अपर्याप्त मात्रा में आँसू में पानी का कम होना होता है। इस तकलीफ से पीड़ित व्यक्तियों में आँखों में रेतीला किरकिरापन, जलन, खुजली, थकान, खिचाव तथा चमकदार रोशनी के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है।

शुष्क आँख का और प्रमुख लक्षण है जिसपर लोग ज्यादा ध्यान नहीं देते वह है आँखो की कोरो के पास पीले के चिपचिपे पदार्थ का जमा रहना। इसे प्रारंभिक लक्षण भी कहा जा सकता है। इसके अलावा आपने देखा होगा कि कुछ लोगों की आँखों से हरदम पानी बहता रहता है, लेकिन इसका अर्थ बिलकुल नहीं है। इन बहते हुए आँसुओं से उनकी आँखों को आराम मिले। संभव है यह बहता पानी आँख में लगी किसी चोट, जलन या भावात्मक पीड़ा के कारण हो। इस लिए ये आँसू शुष्क आँखों की तकलीफ को कम नहीं कर पाते।

आँखों को बिना आराम दिए लंबे समय तक इनके प्रयोग से समस्या बढ़ सकती है जैसे- लगातार पढ़ना, कम्प्यूटर पर काम करना, टीवी देखना, ड्राइविंग करना, धुएँ वाले वातावरण में रहना (सिगरेट का धुँआ भी शामिल है), शुष्क वातावरण, एअर कंडीशनर फैन का इस्तेमाल (विशेषकर कार में), हीटर, हेअर ड्रायर का इस्तेमाल करना आदि। अगर मरीज शुष्क वातावरण से दूर ठंडे स्थानों में रहने को प्राथमिकता दें, तो उससे भी उन्हें आराम मिल सकता है।

बढ़ती उम्र शुष्क आँखों के सामान्य कारणों में से एक है क्योंकि उम्र के साथ आँसुओं का उत्पादन घट जाता है। एक अध्ययन में पाया गया है कि मधुमेह के रोगियों में इसका खतरा बढ़ जाता है। कांटेक्ट लेंस पहनने वाले लोगों को भी सूखी आँख की तकलीफ की शिकायत हो सकती है। अध्ययन ऐसा कहते हैं, परंतु यह अभी भी शोध का विषय है।

सूखी आँखों का उपचार
जहां तक संभव हो धूल, धुँए और शुष्क वातारण से आँखों को बचाएं। एकाग्र होकर कोई काम करने खासकर कम्प्युटर और टीवी के सामने बैठने से बचे। लगातार घंटों एकाग्र होकर किताबें भी न पढ़ें। यदि बैठना आवश्यक हो, तो बीच-बीच में ब्रेक लेते रहें। आँखों में जलन होने पर उन्हें मसलें नहीं, बल्कि पानी के छींटे मारकर उन्हें अच्छें से धो लें और थोड़ी देर आँख बंद कर उन्हें आराम दें, फिर पुनः काम शुरू करें। कम्प्युटर की चमक से आँखों को बचाने के लिए चश्मा पहनकर ही काम करें। आँखें हमेशा माइल्ड सोप से ही धोएं और ध्यान रहे आँखों पर साबुन कभी मसले नहीं। जहां तक संभव हो हेअर ड्रायर के इस्तेमाल से बचें। हीटर पर काम करते वक्त उसकी सीधी आँच से आँखों को बचाने के लिए चश्में का उपयोग करें। कम्प्युटर और टीवी दोनों का ही कंट्रास्ट कम रखें और टीवी को बहुत नजदीक बैठकर न देखें। तकलीफ हो सकती है।

आँखे हमारे शरीर का वह हिस्सा हैं जो हमारी मुलाकात बाह्य संसार से कराती हैं। कहते भी है नेत्र बिना जग सूना। यह ईश्वर प्रदत्त जीवन का अनमोल तोहफा है। इनकी रक्षा करना और इन्हें स्वस्थ रखना हमारा, हम सब का परम धर्म है। इसलिए यदि आप उपर्युक्त बातों का ध्यान रखेंगे, तो ईश्वर के इस अनमोल उपहार की रक्षा हम आसानी से कर सकते हैं।

प्रतिभा वाजपेयी.








गुरुवार, 12 जनवरी 2012

ध्यान को जीवन का अंतिम लक्ष्य बनाएं


 यह सच है कि दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है। यह भी सच है कि हमारे जीवन की रफ्तार भी बढ़ी है, लेकिन यह भी सच है कि हमारी जीवन शक्ति में कमी आई है। निःसंदेह हमारी जीवनशैली पहले से बेहतर हुई है, पर यह भी सच है कि भौतिकवाद की इस शैली, जिसमें हम आँख बंद कर पैसे की तरफ भाग रहे है उससे अनिश्चय और संदेह का वातावरण भी बढ़ा है। आज हम रिश्तों और स्वास्थ्य जीवन के दो प्रमुख तत्त्वों को पुनः पाने के लिए संघर्ष कर रहे है। बढ़ती भौतिकता ने जहां एक हाथ से हमें दिया वहीं दूसरे हाथ से जीवन की सबसे महतत्त्वपूर्ण तत्वों को हमसे जुदा कर दिया। और अधिक देर हो और हम अपने जीवन की थाती ही लुटा बैठे, हमें चेत जाना चाहिए। इन्हें पुनः प्राप्त करने का एक ही तरीका है ध्यान यानी मेडीटेशन। आइए, आज हम और आप मिलकर इस विषय पर बात करते हैं-

ध्यान का यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि आप खुद को समाज और परिवार से काटकर कहीं एकांतवास करने लगे। आप जीवन की मुख्यधारा में रहकर, जीवन का पूर्ण भोग करते हुए भी ध्यान कर सकते हैं। यह आपके जीवन की नयी दिशा और दर्शन देता है। दुर्भाग्य से अंजाने में ही सही हम उन पाशविक प्रवृत्तियों के अनुगामी बन गए हैं। जो फिटेस्ट फॉर द सरवाइवल की बात करती हैं। जिसका सीधा सा अर्थ है कि जो कमजोर है उसे इस समाज में जीने का हक नहीं है। क्या ये सभ्य समाज के नियम हो सकते हैं?  कितने विरोधाभास में हम जी रहे जो एक तरफ वसुधैव कुटुम्बकम की बात करते हैं और दूसरी तरफ कमजोर को जीने का हक ही नहीं देना चाहते। ज्यादा नहीं, सिर्फ एक मिनट ठहर कर, सोच कर देखिए कि हमें इससे क्या हासिल हो रहा है। यही न इसको गिरा कर हम आगे बढ़ जाए, आज इस रेस में हम आगे हैं कल को कोई दूसरा हमको गिराकर आगे बढ़ जाएगा, जो हमसे ज्यादा फिट और ताकतवर होगा। जीवन में जब ऐसी परिस्थितियां आती हैं तो हम कुंठित हो जाते है। स्वयं को छला हुआ अनुभव करते हैं। भूल जाते हैं कि कभी हमने भी ऐसा ही किया था। इस मानसिकता से जाने-अंजाने में ही सही, एक कुंठित समाज का निर्माण हो रहा है। यही वह समय होता है जब हम बहुत सारी बीमारियों को आमंत्रित कर लेते हैं और फिर ताउम्र उनसे जूझते रहते है।

एक बीमार और कुंठित समाज से किसी सकारात्मक ऊर्जा की तो उम्मीद नहीं ही की जा सकती सकती। आखिर हमारी कल्पना का समाज है कैसा? एक ऐसा समाज न जो न सिर्फ शारीरिक रूप से स्वस्थ हो बल्कि मानसिक रूप से भी स्वस्थ हो। और सकारात्मक ऊर्जा से संचालित हो। हमें यह बात कभी नहीं भूलनी चाहिए कि हम परिवार और समाज जो कुछ देंगे, वही कई गुना होकर हमें वापस मिल जाएगा। तो ऐसे में हम सब का कर्त्तव्य बन जाता है कि हम ऐसे समाज समाज के निर्माण का प्रयत्न करें जो सकारात्मक ऊर्जा से ओत-प्रोत हो। और हम यह सिर्फ और सिर्फ मेडीटेशन के माध्यम से ही कर सकते हैं। हमें करना क्या है सिर्फ एक या दो घंटे खुद को समर्पित करने हैं। आप स्वयं महसूस करेंगे कि परिणाम कितने सुखद आते हैं।

एक बार जब आप नियमित रूप से ध्यान शुरू करते हैं, आप महसूस करेंगे कि आपका शरीर कितना रिलैक्स हो गया है। कल तक जो काम पहाड़ जैसे दिखते थे, आज आप अत्यन्त सहजता से कर पा रहे हैं। अब जीवन की असफलताएं आपको निराश नहीं करेंगी, बल्कि आप उन असफलताओं से उबर कर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होंगे। आप बड़ी से बड़ी समस्या से निपटने में सक्षम हो जाएंगे। ध्यान का पहला सिद्धांत है पूरी सांस लीजिए और पूरी सांस बाहर निकालिए। और अपना ध्यान आती-जाती सांसों पर केंद्रित करिए। जैसे-जैसे आप ध्यान की अवस्था में जाएंगे, आपकी सांस की गति धीमी होने लगेगी। आप स्वयं को हल्का महसूस करेंगे, साथ ही आपका तनाव भी घटना शुरू हो जाएंगा। संभव है शुरू में आपको ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई हो, परंतु धीरे-धीरे अभ्यास से सबकुछ सहज हो जाता है। कहावत भी है करत-करत अभ्यास से जड़मति होत सुजान, लसरी आवत जात से सिल पर सिल पर परत निशान। बस हिम्मत मत हारिए, अभ्यास कायम रखिए। एक दिन सब सहज हो जाएगा।

आपको नई जीवन शक्ति मिलेगी और आप दिन-प्रतिदिन के कार्यों में आनंद का अनुभव करेंगे। रात में अच्छी नींद आएंगी। और अनिद्रा के मरीजों को शीघ्र ही दवाओं से मुक्ति भी मिल जाएंगी। एक बात जो चिकित्सकों ने भी गौर की है कि रचनात्मक दिमाग के लिए ध्यान संजीवनी का काम करता है। ध्यान से उठने के बाद उनका दिमाग नए और सकारात्मक विचारों से भरा होता है। यदि आप जीवन के कठिन दौर से गुजर रहे हैं, तो अपने जीवन में ध्यान को अवश्य स्थान दें। आप स्वयं देखेंगे कि कितनी सहजता से आप समस्याओं का समाधान खोज लेते है। मानों चुपके से आकर कोई आपके कान में आपकी समस्या का समाधान बता गया हो।

इसके अलावा ध्यान के अन्य लाभ हैं-
·         चिंता मनस्ताप से मुक्ति
·         फोबिया जैसे मानसिक रोगों से मुक्ति
·         अतीत के दर्दनाक हादसों के कारण होने वाली तकलीफों से भी आपको मुक्त कर देता है
·         एलर्जी के लक्षणों को कम करता है
·         मांसपेशियों में तनाव के कारण होने वाले रोगों तथा गठिया जैसी जटिल समस्याओं से भी निजात दिलाता है
·         शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है
·         प्रारंभिक चरण की कैसर कोशिकाओं भी नष्ट कर देता है

यदि आप अपने जीवन को सरल, सहज और आसान बनाना चाहते हैं तो ध्यान को अपने जीवन में स्थान दीजिए। देखिए आपके जीवन में कैसा चमत्कारिक परिवर्तन आता है।

-प्रतिभा वाजपेयी.