ध्यान का यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि आप
खुद को समाज और परिवार से काटकर कहीं एकांतवास करने लगे। आप जीवन की मुख्यधारा में
रहकर, जीवन का पूर्ण भोग करते हुए भी ध्यान कर सकते हैं। यह आपके जीवन की नयी दिशा
और दर्शन देता है। दुर्भाग्य से अंजाने में ही सही हम उन पाशविक प्रवृत्तियों के
अनुगामी बन गए हैं। जो फिटेस्ट फॉर द सरवाइवल की बात करती हैं। जिसका सीधा सा अर्थ है कि जो कमजोर
है उसे इस समाज में जीने का हक नहीं है। क्या ये सभ्य समाज के नियम हो सकते हैं? कितने विरोधाभास में हम जी रहे जो एक तरफ ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात करते हैं और दूसरी तरफ
कमजोर को जीने का हक ही नहीं देना चाहते। ज्यादा नहीं, सिर्फ एक मिनट ठहर कर, सोच
कर देखिए कि हमें इससे क्या हासिल हो रहा है। यही न इसको गिरा कर हम आगे बढ़ जाए,
आज इस रेस में हम आगे हैं कल को कोई दूसरा हमको गिराकर आगे बढ़ जाएगा, जो हमसे
ज्यादा फिट और ताकतवर होगा। जीवन में जब ऐसी परिस्थितियां आती हैं तो हम कुंठित हो
जाते है। स्वयं को छला हुआ अनुभव करते हैं। भूल जाते हैं कि कभी हमने भी ऐसा ही किया
था। इस मानसिकता से जाने-अंजाने में ही सही, एक कुंठित समाज का निर्माण हो रहा है।
यही वह समय होता है जब हम बहुत सारी बीमारियों को आमंत्रित कर लेते हैं और फिर ताउम्र
उनसे जूझते रहते है।
एक बीमार और कुंठित समाज से किसी
सकारात्मक ऊर्जा की तो उम्मीद नहीं ही की जा सकती सकती। आखिर हमारी कल्पना का समाज
है कैसा? एक ऐसा समाज न जो न सिर्फ
शारीरिक रूप से स्वस्थ हो बल्कि मानसिक रूप से भी स्वस्थ हो। और सकारात्मक ऊर्जा
से संचालित हो। हमें यह बात कभी नहीं भूलनी चाहिए कि हम परिवार और समाज जो कुछ
देंगे, वही कई गुना होकर हमें वापस मिल जाएगा। तो ऐसे में हम सब का कर्त्तव्य बन
जाता है कि हम ऐसे समाज समाज के निर्माण का प्रयत्न करें जो सकारात्मक ऊर्जा से
ओत-प्रोत हो। और हम यह सिर्फ और सिर्फ मेडीटेशन के माध्यम से ही कर सकते हैं। हमें
करना क्या है सिर्फ एक या दो घंटे खुद को समर्पित करने हैं। आप स्वयं महसूस करेंगे
कि परिणाम कितने सुखद आते हैं।
एक बार जब आप नियमित रूप से ध्यान
शुरू करते हैं, आप महसूस करेंगे कि आपका शरीर कितना रिलैक्स हो गया है। कल तक जो
काम पहाड़ जैसे दिखते थे, आज आप अत्यन्त सहजता से कर पा रहे हैं। अब जीवन की
असफलताएं आपको निराश नहीं करेंगी, बल्कि आप उन असफलताओं से उबर कर आगे बढ़ने के
लिए प्रेरित होंगे। आप बड़ी से बड़ी समस्या से निपटने में सक्षम हो जाएंगे। ध्यान
का पहला सिद्धांत है पूरी सांस लीजिए और पूरी सांस बाहर निकालिए। और अपना ध्यान
आती-जाती सांसों पर केंद्रित करिए। जैसे-जैसे आप ध्यान की अवस्था में जाएंगे, आपकी
सांस की गति धीमी होने लगेगी। आप स्वयं को हल्का महसूस करेंगे, साथ ही आपका तनाव
भी घटना शुरू हो जाएंगा। संभव है शुरू में आपको ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
हो, परंतु धीरे-धीरे अभ्यास से सबकुछ सहज हो जाता है। कहावत भी है ‘करत-करत अभ्यास से जड़मति होत
सुजान, लसरी आवत जात से सिल पर सिल पर परत निशान’। बस हिम्मत मत हारिए, अभ्यास कायम रखिए। एक दिन सब सहज हो जाएगा।
आपको नई जीवन शक्ति मिलेगी और आप
दिन-प्रतिदिन के कार्यों में आनंद का अनुभव करेंगे। रात में अच्छी नींद आएंगी। और
अनिद्रा के मरीजों को शीघ्र ही दवाओं से मुक्ति भी मिल जाएंगी। एक बात जो
चिकित्सकों ने भी गौर की है कि रचनात्मक दिमाग के लिए ध्यान संजीवनी का काम करता
है। ध्यान से उठने के बाद उनका दिमाग नए और सकारात्मक विचारों से भरा होता है। यदि
आप जीवन के कठिन दौर से गुजर रहे हैं, तो अपने जीवन में ध्यान को अवश्य स्थान दें।
आप स्वयं देखेंगे कि कितनी सहजता से आप समस्याओं का समाधान खोज लेते है। मानों
चुपके से आकर कोई आपके कान में आपकी समस्या का समाधान बता गया हो।
इसके अलावा ध्यान के अन्य लाभ हैं-
·
चिंता मनस्ताप से मुक्ति
·
फोबिया जैसे मानसिक रोगों से मुक्ति
·
अतीत के दर्दनाक हादसों के कारण होने
वाली तकलीफों से भी आपको मुक्त कर देता है
·
एलर्जी के लक्षणों को कम करता है
·
मांसपेशियों में तनाव के कारण होने
वाले रोगों तथा गठिया जैसी जटिल समस्याओं से भी निजात दिलाता है
·
शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता
है
·
प्रारंभिक चरण की कैसर कोशिकाओं भी
नष्ट कर देता है
यदि आप अपने जीवन को सरल, सहज और आसान बनाना चाहते हैं तो ध्यान को
अपने जीवन में स्थान दीजिए। देखिए आपके जीवन में कैसा चमत्कारिक परिवर्तन आता है।
-प्रतिभा वाजपेयी.
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